मर्दानी
शीर्षक:-'मर्दानी'
"एक ही रानी लक्ष्मीबाई यहाँ नही दुश्मनों संग लडती है,
भूख,प्यास,बेरोजगारी संग तो रोज़ ही बलिवेदी सजती है।
समर क्षेत्र मे तो रोज यहाँ हर मर्दानी लडती है।
दो जून की रोटी खातिर वो तो सब कुछ करती है।
बेटे को पीठ पर दे सहारा वह दुर्गा आगे चलती है,
धर रूप काली का वह तो काल का खण्डन करती है।
तलवार पुरानी हो गयी पर भुजाओं मे बल रखती है,
काट शीश असंभावनाओ का वह तो आगे बढ़ती है।
विपरीत है परिस्थितियां पर वह मर्यादा रखती है,
इस तरह मर्दानी माँ का फर्ज भी पूरा करती है।"
रचनाकार:-
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