पापी पेट

"पापी पेट की खातिर सब कुछ कर लिया,
खुद से ज्यादा वजन कंधो पर सह लिया।
जठराग्नि मिटती नही जतन सब कर लिया,
दो जून की रोटी खातिर मै खूब भटक लिया।
हाय इस गरीबी ने और भी है डस लिया,
ऊपर से बुढ़ापे ने जी भर है रुला दिया।
मैने किसी तरह अपने पेट को भर लिया,
आज जीवन ने काल को फिर है हरा दिया।
भूख मिटाई दोनो ने फर्क इतना हो गया,
सबने खाकर फैका,मैने उठाकर खा लिया।"

रचनाकार:-
अभिषेक शुक्ला"सीतापुर"

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