लघुकथा-'प्रतियोगी प्रेम'
आज उसका फोन आया।उधर से आवाज आयी कि बाबू बहुत याद आ रही है।समर ने बड़े प्यार से अपनी प्रेयसी प्रतिमा से बात की और बाद मे फोन रखते हुये,समर सोचने लगा कि आज कई दिनो बाद प्रतिमा ने उससे बात की। जो दिन-रात उससे बातें करती थी,साथ घूमती फिरती थी और हर पल उसे ही याद करती थी।आज तनिक-सी बात पर गुस्सा होकर कई दिनो तक बातें नही करती है।
शायद...वह बदल गयी थी या समय या फिर खुद मै? प्रतिमा भूगोल प्रवक्ता पद पर चयनित होकर अपने भैय्या और भाभी के साथ लालपुर मे रहने लगी थी।जिसके कारण वह समर को टाईम नही दे पाती थी।समर आज भी दिल्ली मे रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था।
इस कारण जब उसे टाईम मिलता तब वह फोन प्रतिमा को करता था।पर वह कभी कभी ठीक से बात न करती और आये दिन उस पर उल्टा गुस्सा भी हो जाती थी।
समर घर से कोचिंग के लिए बाइक से निकला और फिर सोचने लगा कि वह प्रतिमा से इतना प्यार करता है।उसे तो समझना चाहिये कि उसका समर बेरोजगार है,दिन-रात पढ़ायी करता है।इसलिये उसे तनिक सा टाईम दे देना चाहिये ताकि मै भी जिन्दगी की सारी उलझने थोड़ी देर के लिए भूलकर तनिक खुश हो लूँ।
समर सोचता है कि जब वो गुस्सा हो जाती है तो मेरी कॉल तक न रिसीव करती और न ही मेसेज करती है।उसे तनिक सा भी एहसास है?कि मै कितना परेशान हो जाता हूँ।
मुझसे ज्यादा तो किस्मत वाले वो लोग है जो प्रतिमा के आस पास रहते है।कम से कम उसे देख तो लेते है।मुझसे ज्यादा रॉन्ग नम्बर वाले अच्छे है,उनका भी फोन प्रतिमा रिसीव कर लेती है।उसकी बाइक की स्पीड धीरे-धीरे बढ़ती जाती है....वह क्यो नही समझती?
उसका समर सिर्फ उससे प्यार करता है।यह सोचते सोचते उसकी आँखे भर आती है।वह सामने से आता हुआ ट्रक नही देख पाया और.....
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