गाँव की मिट्टी

गाँव की मिट्टी मे सौंधी सी खुशबू आती है, 
रिश्तों मे अपनेपन का एहसास कराती है। 
चलती हुई पावन पवन मन को छू जाती है, 
नीम और बरगद की छाया पास बुलाती है। 
अपने घर आँगन की तो बात ही निराली है, 
गूलर के पेड़ पर बैठ कोयल गाती मतवाली है। 
पानी और गुड़ से स्वागत की शान निराली है, 
सभी मेहमानों को इसकी मधुरता खूब भाती है। 
कोल्हू से गन्ने का रस पीकर हम मौज मनाते है, 
हम गाँववाले कुछ इस तरह गर्मी भगाते है। 
हप्ते मे हम दो दिन ही गाँव की बाज़ार जाते है, 
हरी सब्जियां और आवश्यक सामान घर लाते है। जोड़,घटाना,गुणा,भाग मे हम थोड़े कच्चे होते है, 
लेकिन रिश्तों को निभाने मे एकदम पक्के होते है। 

रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

Comments

Popular posts from this blog

विश्वासघाती

अभागिन माँ की वेदना#justice 4 twinkle

बेशर्म आदमी