हाँ,मै भी बेरोजगार हूं।

सब सो जाते है पर मुझे रात मे भी नीद आती नही है,
मेरे बेचेंन मन को कोई भी बात अब भाती नही है। 

साहब!बता दूँ सबको कि मै कोई चौकीदार नही हूं, 
मै पढ़ा लिखा,डिग्रीधारी एक बेरोजगार हूं।

बूढ़े माँ बाप की हर पल चिन्ता सताती रहती है, 
भाई बहनों की जिम्मेदारी भी याद आती रहती है। 
जब भी कोई नौकरी की आशा की किरण जगती है, 
वही भर्ती हमेशा अन्त मे कोर्ट मे जाकर फसती है। 
चार पैसे कमाने के बारे मे दिन रात सोचा करता हूं, 
पर इन्ही परिस्थितियों मे भी मन लगाकर पढ़ता हूं। 
कभी खुद की,कभी घर की चिन्ता मे डूबा रहता हूं, 
इसीलिए शायद आजकल मै रातो को जागा करता हूं। 

साहब! बता दूँ सबको कि मै कोई चौकीदार नही हूं। 
मै पढ़ा लिखा,डिग्रीधारी एक बेरोजगार हूं।।

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रचनाकार:-
अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

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