रोटी और जिगर

'सदियां गुजर गयी,सारी रियासतें सिमट गयी,
शान शौकत की बात पर तलवारें निकल गयी।
सब कुछ मिटा,मिट रहा है और मिट जायेगा,
पर रोटी का मामला कभी सुलझ न पायेगा। 
मजबूरियाँ है किस कदर कोई क्या समझेगा?
जीवन यापन की समस्या से कैसे कोई निपटेगा?
रोटी की खातिर न जाने क्या-क्या आजमाना पड़ता है,
जिगर के टुकड़े को भी कभी-कभी दांव पर लगाना पड़ता है।'

रचनाकार:-
अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

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