इल्जाम न देना

"जो मेरी हर बात मे वाह!वाह! किया करते थे,
मेरे हर किस्से को अलग अंदाज कहा करते थे। 
अब कहते है कि आपका लहजा ठीक नही है, 
मेरे मन मे आपके लिए कुछ भी शेष नही है। 
जिन्दगी कैसे जी जाती है ये मै जान गया हूं, 
अपनो से मै दुनियादारी सब कुछ सीख गया हूं। 
आप भी बदलते समय के साथ-साथ बदल जाओ, 
जिन्दगी जीनी है तो अब धोखा देना सीख जाओ। 
ये प्यार के पक्षी सिर्फ ख्वाबो मे ही उड़ा करते है, 
एक दूजे को देखकर खुश रहकर जिया करते है। 
बदलते परिवेश ने सारा चमन उजाड़ दिया, 
जो सिर्फ मेरा था उसे अनजाना बना दिया। 
वो कहता है कि तुम मुझे अब कभी आवाज न देना, 
मै तेरे बुलाने पर भी न आऊँ तो कोई इल्जाम न देना।।" 


रचनाकार:- अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'



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