प्रेम माह

चुना था जो गुलाब सनम के लिए वो भी शर्माकर आज मुरझा सा गया,
प्रेम से परिपूर्ण है यह फ़रवरी आज का दिन भी मायूसी मे ढल ही गया। 
वह है मजबूर इतना एक बार हंसकर मुझसे कहते तो सही,
बेकरार है दिल उनका भी यह बात वो कुबूल करते तो सही। 
हमने अपने जज्बातो को किस कदर दिल मे दबा रखा है, 
मन ही मन मैने तो उन्हे अपना सनम बना रखा है। 
वो आ जाये मेरे सामने तो जी भर उनका दीदार मै कर लूँ, 
सूरत पर उनकी टिका कर नजर दो चार बात मै कर लूँ। 
थोड़ा सा करार मिल जायेगा मेरे बेकरार दिल को, 
अगर भा गया तनिक भी मेरा दीवानापन उनको। 
प्रेम के इस माह मे मेरे मन मन्दिर में तुम बस जाओ, 
प्रेम बन्धन तोड़कर फिर कभी मुझसे दूर न जाओ।।

रचनाकार:-
अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'

Comments

Popular posts from this blog

विश्वासघाती

अभागिन माँ की वेदना#justice 4 twinkle

बेशर्म आदमी