जागो अभिभावक जागो
*जागो अभिभावक जागो*
शिक्षा जीवन का आधार होती है। शिक्षा हमें जीवन जीने की कला प्रदान करती है। शिक्षाविदों ने शिक्षा को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया। लेकिन सबने स्वीकार किया कि शिक्षा बालक का शारीरिक,मानसिक और अध्यात्मिक विकास करती है और उसे भविष्य के लिये तैयार करती है।
जब बात शिक्षा की आती है,तो हमें शिक्षक,शिक्षार्थी,पाठ्यक्रम,स्कूल और कक्षा याद आती है। जिसमें प्रमुख स्थान शिक्षक का होता है। शिक्षक अपने छात्रों को सभी विषयों का ज्ञान प्रदान करते है और उन्हें सुनहरे भविष्य के लिये गढ़ने का कार्य करते है।
जान डीवी ने शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया कहा था,जिसमें शिक्षक,शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम को स्थान दिया। पाठ्यक्रम का महत्व है किन्तु शिक्षा सिर्फ ज्ञान प्रदान करना ही नही है। ज्ञान तो कई माध्यमों से प्राप्त किया जा सकता है। विषयवस्तु तो किताबों,गूगल और समाचार पत्रों,पत्रिकाओं में भरी पड़ी है। शिक्षा का उद्देश्य सर्वांगीण विकास है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया ही है यह बात मैं स्वीकार करता हूँ। मेरे अनुसार शिक्षा की प्रक्रिया के प्रमुख अंग शिक्षक,शिक्षार्थी और अभिभावक है।
शिक्षक अपने शिक्षार्थियों के चहुँमुखी विकास हेतु सदैव तत्पर रहते है। शिक्षार्थी भी अपने गुरूजन की बतायी बातों का अनुसरण करने का प्रयास करते है। प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र तब भ्रमित हो जाते है जब उन्हे शिक्षक पढ़ा कुछ रहे है और उन्हें उस ज्ञान का बिल्कुल उल्टा परिदृश्य समाज और घर में देखने को मिलता है।
शिक्षक ने स्कूल में महात्मा गाँधी नामक पाठ पढ़ाते हुये कहा कि बच्चों! हमें सदैव सत्य बोलना चाहिये।
बच्चा घर जाता है, तभी मकान मालिक किराया लेने आ जाता है। वह जाकर अपने पिता से बताता है। उसके पिता घर पर ही होते है किन्तु बेटे से कहते है कि उनसे कह दो कि मैं घर पर नही हूँ।
अगले दिन शिक्षक राजकुमार सिद्धार्थ का पाठ पढ़ाते हुये कहते है कि हमे जीवों पर दया करनी चाहिये। बच्चा घर जा रहा होता है तब उसकी निगाह पड़ती है कि उसका पड़ोसी अपनी भैस पर लट्ठ बरसा रहा होता है।
बच्चा घर जाकर कहता है कि मैं स्कूल नही जाऊँगा क्योंकि वहाँ सब गलत पढ़ाया जाता है।
अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजकर खुद फुर्सत में हो जाते है। ये बिल्कुल भी सही नही है। विद्यालय में बच्चा आकर अच्छी आदतें और बातें सीखता है किन्तु वो बातें और ज्ञान सत्य और प्रमाणिक है इसका सत्यापन वह अपने घर व समाज में करने का प्रयास करता है। इसलिये गुरु द्वारा दिये गये ज्ञान पर मुहर लगाने का कार्य अभिभावकों को करना चाहिये। निश्चित रूप से शिक्षक बच्चों को हर सम्भव जानकारी,ज्ञान और संस्कार देने का प्रयास करते है किन्तु अभिभावकों को भी सहयोग करना चाहिये।
ईश्वर ने सबको दो आँखे प्रदान की। एक से चित्र और दूसरे से अंक और अक्षर का दर्शन होता है। माँ प्रथम शिक्षिका होती है जो चित्रों,वस्तुओं और अपनी आँखों से बच्चें को दुनिया दिखाने की कोशिश करती है। दूसरी तरफ शिक्षक चित्र,अंक और अक्षर के माध्यम से बच्चों के सामने पूरे ब्रम्हाण्ड को प्रकट कर देता है। कोई भी ज्ञान हो संस्कार हो उसकी शुरुआत घर से ही होती है।
बच्चों में शिक्षा द्वारा संस्कार गढ़ने का कार्य शिक्षक द्वारा किया जाता है। बच्चा में यदि कोई बुरी आदत दिखायी पड़ती है तो शिक्षक उसे दूर करने का प्रयास करते है। समाज की बुराईयां बच्चों में न पनपने पाये इसलिये शिक्षक उनके सामने प्रेरक प्रसंग और महापुरुषों की गाथा गाकर उन्हें पथभ्रष्ट होने से बचाकर उन्हें अच्छा नागरिक बनाने का प्रयास करते है।
बच्चों को विद्यालय से अच्छी बातें,अपार ज्ञान और अनन्त जानकारी अवश्य ही मिल सकती है। शिक्षक उन्हें जीवन के लिये तैयार तो करते है किन्तु संस्कारों का निर्माण अभिभावकों के सहयोग के बिना सम्भव नही है।
अभिभावक अपने बच्चों के ज्ञान वृद्धि के लिये अनेक उपाय अपना लेते है, किन्तु अपने मुख्य उत्तरदायित्व से बचते रहते है। आपको भी अपने बच्चों के सामने खुद को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। बच्चें पढ़ लिख जाये और अच्छी नौकरी पा ले,यह ही आपका उददेश्य नही होना चाहिये। आजकल पढे- लिखे युवा गैर सामाजिक कार्यों मे संलिप्त हो रहे है। इस पर विचार करे आखिर क्यों ऐसा उनके द्वारा किया जा रहा है। उन्होनें ज्ञान का अर्जन तो कर लिया किन्तु संस्कारों की कमी बनी रही है जिसके जिम्मेदार सिर्फ अभिभावक ही है। विद्यालय में शिक्षकों द्वारा बच्चों संस्कारयुक्त शिक्षा प्रदान की जाती है,किन्तु वह जब घर और समाज में उसके इतर माहौल देखता है तो संस्कार पीछे छूट जाते है। बच्चों में संस्कारों की कमी भयावह स्थिति बन चुकी है। इस पर विराम लगना आवश्यक है। इसलिये अभिभावकों को अपने दायित्व को समझना होगा। अभिभावक अपने बच्चों के लिये उनके सुनहरे भविष्य के लिये शिक्षकों का सहयोग करे। अभिभावक बच्चों के सामने झूठ न बोले,धूम्रपान न करे,अहिंसात्मक कृत्य न करे और न ही असामाजिक कार्यों में संलिप्त हो। बल्कि अपने बच्चों का नियमित अवलोकन करे,शिक्षकों के सम्पर्क में रहे और अपने बच्चों को घर में अच्छा वातावरण प्रदान करे ताकि उनमें ज्ञान वृद्धि के साथ संस्कारों का निर्माण हो सके।
शिक्षक अपने शिक्षार्थी की उन्नति हेतु अनेक शिक्षण विधियों,नवाचार व प्रेरक प्रसंगो द्वारा उनके ज्ञान की वृद्धि हेतु सदैव ही तत्पर रहते है। किन्तु अब बदलते परिवेश में यह नितान्त आवश्यक हो गया है कि अभिभावक अपने बच्चों के लिये स्वयं भी आदर्श प्रस्तुत करे। बच्चों में संस्कारों का सृजन शिक्षक व अभिभावक के संयुक्त प्रयासों द्वारा ही सम्भव है। हमारा दायित्व है कि यह संदेश अभिभावकों तक जरूर पहुँचे। शिक्षक वैज्ञानिक ढंग से बच्चों को ज्ञान प्रदान करते हुये उनमें पनप रही बुराईयों का अन्त करने का प्रयास करते है और अभिभावकों को चाहिये कि वे शिक्षक द्वारा प्रदत्त ज्ञान पर अपनी मुहर लगाये ताकि बच्चा उसे अपने जीवन में उतार कर सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ चले।
लेखक:-
अभिषेक कुमार शुक्ला
प्राथमिक विद्यालय लदपुरा
पीलीभीत
Comments
Post a Comment