शिक्षक कैसे होने चाहिये

लेख- 'शिक्षक कैसे होने चाहिये' युग निर्माता,छात्रों का भाग्य विधाता और उनके उज्ज्वल भविष्य को सुदृढ़ सरंचना प्रदान करने वाला शिक्षक ही होता है। शिक्षाविदों और मनीषियों ने शिक्षक की बहुत सी मान्य परिभाषायें दी है किन्तु ईश्वर,माँ और शिक्षक को कोई भी विद्धान परिभाषित नही कर सकता और न ही इन्हें शब्दों में बांधकर इनको सीमित किया जा सकता है। इनकी महिमा का सिर्फ हम बखान कर सकते है। जो किसी के जीवन की गाथा स्वयं लिखता है उसे नये आयाम प्रदान करता हो, इसलिये शिक्षक वन्दनीय और उनका पथ अनुकरणीय होता है। शिक्षक सच्चा पथप्रदर्शक होता है। समाज शिक्षक से बहुत- सी आशायें रखता है। जिनकी पूर्ति सिर्फ शिक्षा के माध्यम से शिक्षक ही कर सकता है। संस्कारयुक्त समाज की स्थापना केवल शिक्षक के प्रयासों से ही सम्भव है। समाज इस बात को स्वीकार भी करता है। इसलिये वह अपेक्षा  करता है कि शिक्षक कैसे होने चाहिये? शिक्षक सिर्फ शिक्षा ही नही देते अपितु वे अपने किरदार को जीते है। इसलिये शिक्षक सदाचारी,कर्तव्यनिष्ठ व समय का पाबंद होना चाहिये। देशकाल,वातावरण व वैश्विक सम्बन्धों में निरंतर परिवर्तन हो रहे है। इसलिये शिक्षक को बदलते परिवेश के प्रति जागरूक रहना चाहिए। शिक्षक को निरंतर अध्ययनशील रहना चाहिये। विषयगत व तकनीकी परिवर्तनों को समझकर खुद को अद्यतन रखना चाहिये। शिक्षक अपने विषय का मर्मज्ञ हो इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि उन्हें अन्य विषयों का भी समुचित ज्ञान होना चाहिये। शिक्षक के अन्दर क्षेत्रवाद,जातिवाद व लैगिंक पूर्वाग्रह की भावना नही होनी चाहिये। शिक्षक समाज का दर्पण होते है। शिक्षक बच्चों के लिये अनुकरणीय होता है। अत: शिक्षक को ऐसी भाषा का प्रयोग नही करना चाहिये जो सामाजिक दृष्टिकोण से उचित न हो।  शिक्षक को नई शिक्षण विधियों का प्रयोग करते हुये शिक्षण कार्य करना चाहिये। नवाचार का प्रयोग करते हुये शिक्षण- अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर बनाना चाहिये। शिक्षक को कभी भी किसी भी बच्चों को अधिक या कम नही आंकना चाहिये, क्योंकि आपके मानदंड ही उन्हे गर्त या शीर्ष पर पहुँचा सकते है। कक्षा में क्या पढ़ाना है, कैसे पढ़ाना है। इसका पूर्व निर्धारण व तैयारी करके ही कक्षा में प्रवेश करना चाहिये। शिक्षक को विषयवस्तु को नित नवीन तरीकों का प्रयोग करके बच्चों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिये। ताकि जब आप कोई सबक सिखाये तो बच्चें पूर्ण मनोयोग से उसे समझने का प्रयास करे। यह उददेश्य न हो कि  सिर्फ़ पाठ्यक्रम पूरा हो जाये वरन   यह लक्ष्य हो कि बच्चें सिखाये गये ज्ञान को समझे और आत्मसात कर ले। शिक्षक को पाठ्यक्रम के साथ ही पाठ्यसहगामी क्रियाओं पर भी ध्यान देना चाहिये। बच्चों का चहुँमुखी विकास ही शिक्षा का उद्देश्य होता है। शिक्षक को अपने सहकर्मियों के साथ सरल रहना चाहिये और निरंतर अभिभावकों के सम्पर्क में रहना चाहिये। अपने साथी शिक्षकों का सहयोग लेते हुये व अभिभावकों से परामर्श लेते हुये, बच्चों के भविष्य को सुनहरा बनाने के लिये समर्पित रहना चाहिये। वर्तमान समय में शिक्षा के क्षेत्र में तकनीकी का प्रयोग बहुत अधिक बढ़ गया है। आज मोबाइल पर वॉट्सएप्प ग्रुप बनाकर पढ़ायी हो रही है। कक्षा- कक्ष में आई.सी.टी. के प्रयोग से शिक्षा को नये आयाम दिये जा रहे है। दीक्षा ऐप्प के माध्यम से शिक्षक प्रशिक्षण हो रहे है और बच्चों को भी इसके माध्यम से पढ़ाया जा रहा है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि शिक्षक को तकनीकी रूप से दक्ष होकर बच्चों का सुनहरा भविष्य इन नवीन प्रयोगों के माध्यम से तैयार करना है। आज ई- लर्निंग समय की माँग बन चुकी है। इसलिये बदलने शैक्षिक परिवेश में शिक्षक को समय के साथ खुद को भी अद्यतन रखने की नितान्त आवश्यकता है। आप शिक्षक के रूप में कितना सफल है इसका आंकलन तब ही हो जायेगा कि आपके विद्यालय के बच्चें आपका अपनी कक्षा में उत्सुकता से इन्तज़ार करे। इसी के साथ जो बच्चें अपनी शिक्षा पूर्ण करके विद्यालय से जा चुके है और वह आज भी आपको और आपकी पढ़ायी को याद करते है तो यह निश्चय है कि आपने अपने शिक्षक रूप व जीवन को साकार कर लिया है। आपकी शिक्षा अनंतकाल तक जीवित रहेगी और यही एक शिक्षक की कामयाबी है। शिक्षक आदिकाल से पूजनीय थे और अनंतकाल तक वन्दनीय रहेंगे। शिक्षक समाज में ज्ञान की धारा को प्रवाहित करते है। अपने प्रयासों से आत्मा के बुझे हुये ज्ञान दीप को प्रज्ज्वलित कर मानव जीवन को साकार बनाते है। शिक्षक ही है जो अपने ज्ञान से मानव जीवन को नया इतिहास रचने योग्य बनाते है। शिक्षक की महिमा यदि पृथ्वी को कागज़ व समुद्र को स्याही मानकर भी लिखी जाये तब भी नही लिखी जा सकती। शिक्षक स्वयं में पूर्ण और अनन्त है और सम्पूर्ण मानव जाति के लिये वन्दनीय है। शिक्षक के बिना शिक्षा की संकल्पना ही अधूरी है और शिक्षा के बिना मानव जाति शून्य से बढ़कर कुछ नही। इसलिये समाज अपने शिक्षकों से अनुरोध करता है कि वे अपने ज्ञान से मानव जाति को अभिभूत करते रहे। लेखक:- अभिषेक शुक्ला प्राथमिक विद्यालय लदपुरा  जिला- पीलीभीत

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