लेख:- शिक्षक,शिक्षार्थी और ऑनलाइन शिक्षण

शीर्षक :- 'शिक्षक,शिक्षार्थी और ऑनलाइन शिक्षण'

शिक्षा ही जीवन का आधार है।इसीलिये शिक्षक देशकाल,वातावरण व समय के अनुरूप अपनी शिक्षण विधाओं में भी परिवर्तन करते रहते है, ताकि प्रभावी शिक्षण के माध्यम से बच्चों को लाभान्वित कर सके।शिक्षक सुदृढ़ समाज के निर्माण हेतु सदैव तत्पर व वचनबद्ध रहते है।
इसकी जीती जागती तस्वीर इस समय कोरोना जैसी महामारी के काल में भी देखी जा सकती है।शिक्षक ऑनलाइन शिक्षण द्वारा बच्चों तक ज्ञान की गंगा प्रवाहित कर प्रफुल्लित हो रहे है। इन विकट परिस्थितियों में जब विद्यालय बन्द है, तब ऑनलाइन शिक्षा ही एकमात्र विकल्प है।किन्तु ऑनलाइन शिक्षण से न ही शिक्षक संतुष्ट है और न ही शिक्षार्थी और अभिभावक।

ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से शिक्षक विषयवस्तु को अपने शिक्षण के माध्यम से बच्चों तक प्रेषित अवश्य कर रहे है किन्तु वह स्वीकार करते है कि उनका शिक्षण इस दशा में इतना प्रभावी नही हो पाता जितना कि विद्यालय की एक कक्षा में होता है।

दूसरी तरफ, बच्चों को भी ऑनलाइन शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया लगती है। उन्हे भी विषयवस्तु को समझने मे कठिनाई का अनुभव होता है। बच्चों को कई घण्टो तक इस प्रक्रिया में रहने के कारण उन्हे सिर दर्द,आँखो में दर्द व थकान आदि समस्याओं का सामना करना पड़ा है। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने भी यह स्वीकार किया है कि कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य पर ऑनलाइन शिक्षण से प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

अभिभावक भी स्वीकार करते है कि ऑनलाइन शिक्षण ज्यादा समयावधि के लिये उपयुक्त नही है। जिन अभिभावकों के बच्चें कम उम्र के है, उन्हे तो स्वयं भी बच्चों का सहयोग करना पड़ता है। जिसके कारण उनका स्वयं का कार्य भी बाधित होता है।

ऑनलाइन शिक्षण में भले ही कुछ कमियाँ है किन्तु कोरोना काल में शिक्षण के लिये यही एकमात्र विकल्प है। इसलिये सरकार द्वारा भी इसी के माध्यम से शिक्षण की सलाह दी गयी है।
ऑनलाइन शिक्षण शहरी क्षेत्रों व निजी विद्यालय के शिक्षक,शिक्षार्थी व अभिभावकों के लिये शिक्षा का एक अचूक अस्त्र साबित हुआ है।

परन्तु ग्रामीण परिवेश व सरकारी विद्यालयों के बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करना अत्यन्त ही दुष्कर कार्य है।
यहाँ बच्चों व उनके अभिभावकों के पास न तो मोबाइल है और न ही लैपटॉप। कुछ बच्चों व अभिभावकों के पास ही इनकी उपलब्धता है तो उनके में भी डाटा रीचार्ज नही। ग्रामीण अंचल में गरीबी,अशिक्षा,संसाधनों की कमी व नेटवर्क की समस्या ऑनलाइन शिक्षण में बहुत ही बड़ी बाधा है।

शिक्षक तेरह खाने की रिन्च के समान होता है। हर समस्या का यथासंभव समाधान उसके पास होता है। शिक्षकों ने पहले उन अभिभावकों को चिन्हित किया जिनके पास मोबाइल उपलब्ध थे, उसके बाद उन अभिभावकों से सम्पर्क किया जो सक्षम थे उन्हे मोबाइल व लैपटॉप खरीदने हेतु आग्रह किया। इन सबसे अनुरोध भी किया कि वह अपने बच्चों के साथ- साथ उन बच्चों को भी ऑनलाइन शिक्षण से लाभान्वित कराये जिनके पास संसाधन उपलब्ध नही है। उन्हे सलाह भी दी कि कोविड प्रोटोकाल का उल्लंघन किसी भी दशा में न होने पाये। इस तरह शिक्षकों ने कड़ी चुनौतियां का सामना करते हुये असम्भव को भी सम्भव कर दिया।

यह सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है कि इस महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षण ने शिक्षक व शिक्षार्थी के मध्य सेतु का कार्य किया है। किन्तु ऑनलाइन शिक्षण की जटिलता, समस्याओं व दुष्प्रभावों को भी अनदेखा नही किया जा सकता है।
ऑनलाइन शिक्षण से बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव का जिम्मेदार कौन?
संसाधनों की कमी होने पर ऑनलाइन शिक्षण कितना सार्थक सिद्ध होता है?
अभिभावकों की अशिक्षा, असहयोग व उदासीनता के कारण ऑनलाइन शिक्षण अपने उददेश्यों में कितना सफल हो सका?
ऑनलाइन शिक्षण निजी विद्यालयों के लिये फ़ीस उगाही का बस एकमात्र जरिया तो ही नही?
उपरोक्त प्रश्नों पर विचार करना व उनके उत्तर ढूँढना नितांत ही आवश्यक है।
समाज नमन करता है उन शिक्षकों को जिन्होनें 
कई प्रश्न व बहुत- सी समस्याएं के बीच भी अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुये अपने दृढ़ संकल्प से ऑनलाइन शिक्षण को इन विपरीत परिस्थितियों में भी सार्थक बनाकर बच्चों के उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया।

लेखक:-
अभिषेक शुक्ला 
समाजसेवी,विचारक,साहित्य
साधक
सीतापुर,उत्तर प्रदेश

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