कुछ लिख पाऊँ

"प्रभु! सूरदास सम दृष्टि देना मैं आपके दर्शन कर पाऊँ, 'सूरसागर' में अपनी सब मैं अभिलाषा लिख पाऊँ। 
कृपा से आपकी तुलसीदास-सा मैं बैरागी बन जाऊँ, 
"मानस" की रचना कर 'मानस' को मानस कर पाऊँ। 
जीवन की सत्यता का मैं भी घर- घर दीप जलाऊँ, 
कागज़ कलम छुएं बिना मैं ज्ञानी कबीर बन जाऊँ। 
जब भी प्रभु अवतार धरो संग सखा बनकर आऊँ, 
आप बनो कृष्ण- कन्हैया मैं सुदामा बन जाऊँ। 
प्रभु आपका वात्सल्य मिले तो भक्त हनुमान बन जाऊँ, 
माता सीता की सुधि लेकर लंका दहन मैं कर आऊँ। 
प्रभु दो वरदान कि अपनी लेखनी से मैं कुछ लिख पाऊँ, 
आपकी स्तुति कर मैं अपना जीवन सफल कर जाऊँ।"

रचनाकार:-
अभिषेक शुक्ला 
शिक्षक,विचारक,साहित्य साधक
सीतापुर,उत्तर प्रदेश 

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