हम तो बड़े आदमी हो गये

लेख :- 'हम तो बड़े आदमी हो गये' 

आज आपकों ले चलता हूँ आपके बचपन की ओर,जहाँ न कोई चिन्ता थी और न ही कुण्ठा। जीवन में उमंग,जोश,खुशियाँ और बस शरारतें थी। 

कितना प्यारा था बचपन! तनिक- सी बात पर रूठना और फिर खुश हो जाना। अपने दोस्तों संग खेलना- कूदना और स्कूल जाना। अपनी नयी साईकिल पर दोस्तों को घुमाना और चिल्लर से ही पार्टी हो जाना। मिल बाँटकर हर चीज़ भाई- बहनों और दोस्तों के साथ खाना। झगड़ा और सुलह तो दिन में पचास बार होना। साल भर गर्मियों की छुट्टियों का इंतजार करना और फिर नानी और बुआ के घर जाना। सभी से यथोचित अभिवादन,न ईर्ष्या और न ही द्वेष की भावना का होना। हमारी भी नाव पानी में चलती थी। हमारा हवाई जहाज भी हवा में उड़ता था। कागज़ के थे तो क्या हुआ। अपने घर के बड़े से आँगन में खेल खेलना। होली पर नये कपड़े पहनकर घर- घर जाना। दीपावली पर संग मिलकर दीप जलाना। कितना याद आता है बचपन! उम्र के साथ- साथ सब कुछ परिवर्तित हो गया है या हम बदल गये है? ये विचारणीय है। कुछ भी हो किन्तु पर अब हम बड़े आदमी हो गये है। 


 हम भले ही सरकारी, प्राइवेट या मल्टी-नेशनल कम्पनी में काम करके अच्छी तनख्वाह पा रहे है लेकिन हमें वह खुशी नही मिलती जो बचपन में चिल्लर से मिलती थी। आज हमारे पास बड़ी सी गाडियाँ है पर वैसे दोस्त नही है जो हमारे साथ घूमा करते थे। आज भले ही हम महँगी से महँगी चीज खरीद ले, कोई दोस्त उसकी तारीफ़ करने नही आता। बचपन की साईकिल चलाने के लिये दोस्तों मे होड़ लग गयी थी पर नई खरीदी हुई कार पड़ोसी देखने तक न आया। तब लड़ते थे तुरंत सुलह होती थी। आज कई रिश्तेदार और दोस्त नाराज हो तब भी हम फ़िक्र नही करते। वो नाराज है तो घर बैठे,मुझे जरूरत नही किसी की। यह हमारा जवाब होता है। वो हमें याद नही करते तो हम उन्हें क्यूँ याद करे। यही करते- करते हम अपनों से दूर हो गये या खुद से ही दूर हो गये। 

बुरा तो लगेगा पर कहूँगा जरूर, आर्थिक सम्पन्नता ने हमें घमंडी और स्वार्थी बना दिया। पर क्या खाख बड़े आदमी बन गये? गाँव के बड़े से घर को छोड़कर फ्लैट में रहना बड़प्पन है या मजबूरी? ब्राण्डेड कपड़े पहनना, बड़ी गाड़ी से चलना, सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहना और गरीब आदमी को जलील करना। क्या ये बड़प्पन है? जब जरूरत पड़ती है तो अपने ही रिश्तेदार,घरवाले और दोस्त ही काम में आते है। इसलिये दिखावे की दुनिया से बाहर निकले और घमंड को त्यागकर अपनों के सम्पर्क में रहे,तभी सारी उम्र आपको बचपन जैसी खुशियाँ मिल सकती हौ। बड़ा आदमी दिल से होता है,दौलत से नही। आप जैसे न जाने कितने सिकन्दर आये और गये।

यह व्यंग्य है या सच्चाई? यह मुझे भी नही पता है किन्तु अर्थ प्रधानता और आधुनिकता ने हमारे मन मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया है। खुद को समझे,अपनों को समय दे और स्वयं पहल करे,अपनों को अपना बनाये रखने के लिये। जीवन कीमती है,इसे अपनों की महक से अनमोल बनाये रखना सिर्फ आपका काम है। 
लेखक:- अभिषेक शुक्ला सीतापुर, उत्तर प्रदेश

Comments

  1. Kabi khud ko tatola jwab khud hi mil jayega

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