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बन्दर

शीर्षक: बाल गीत- मॉन्टी बन्दर छत पर बैठा मॉन्टी बन्दर, मै था अपने घर के अंदर। खिड़की से मै देख रहा था, बन्दर कैला खा रहा था। ईन्दर चाचा ने उसे भगाया, तब वह उनके ऊपर खुर्राया। रचनाकार:-  अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर' उत्तर प्रदेश

कलयुगी

दम्भी घर मे कई मकान बना बैठे है, झूठी शान से अपनी दीवारें सज़ा बैठे है। खुद को समझते है खुदा और औरों से जुदा, झुग्गियों पर सनकी अपना नाम खुदा रखे है। मिथ्याभिमान मे कुरेद कर छाती पुरखों की, भ्रम की दुनिया मे ताजमहल बना बैठे है। कलयुगियों के क्या- क्या काण्ड बताऊँ, ये तो बड़े से बड़ा पाखण्ड किए बैठे है।

सूरत

कमरे से तस्वीर हटी पर आँखों मे उसकी सूरत बसती है। इश्क़ की यह आतिशबाजी छिपाये से भी न छिपती है।।

सामना

मैं फ़िर आऊंगा तुम्हारी महफिल मे....तुम लोग तो इकट्ठा करो जो मेरी शक्सियत का सामना कर सके।