कलयुगी

दम्भी घर मे कई मकान बना बैठे है,
झूठी शान से अपनी दीवारें सज़ा बैठे है।
खुद को समझते है खुदा और औरों से जुदा,
झुग्गियों पर सनकी अपना नाम खुदा रखे है।
मिथ्याभिमान मे कुरेद कर छाती पुरखों की,
भ्रम की दुनिया मे ताजमहल बना बैठे है।
कलयुगियों के क्या- क्या काण्ड बताऊँ,
ये तो बड़े से बड़ा पाखण्ड किए बैठे है।

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